Pages

Labels

Saturday, September 1, 2012

असम में मोदी राज



असम में आजकल मोदी राज चल रहा है, एक महीने पहले पैदा हुआ दंगा थम ने नाम नहीं ले रहा, शायद सरका भी यही चाहती है क्योंकि वहाँ पर कहने को तो कांग्रेस पार्टी की सरकार है, वैसे मोदी राज चल रहा बोडोकबाइल और मुसलमानों के बीच एक महीने पहले दंगा शुरू हुआ था जिस की चपेट में आकर जहां सैकड़ों निर्दोष लोगों की जान चली गई है, वहीं करीब पांच लाख लोग अस्थायी शिविरों में जानवरों जैसा  जीवन गुज़ारने पर मजबूर है, झगड़े का  आधार यह बताया जा रहा  है कि बड़ी संख्या में बांग्लादेशी मुसलमान असम में आ गए हैं जिनकी बढ़ती संख्या से बोडो जनजाति को खतरा है और वह मानते हैं कि इस तरह वह अल्पसंख्यक बन जाएंगें , मीडिया  विशेष रूप  से हिन्दी वाले इस बात का पुर  जोर समर्थन करते हैं, उसी तरह हिन्दू  कोम परस्त संगठनों को तो गोया इसमें कोई शक ही नहीं है, दूसरी ओर उर्दू मीडिया और मुस्लिम संगठन हैं, उनका कहना है कि असम विशेष कर कूकर झार, धाबरी व्  आस पास के क्षेत्र में स्थित मुसलमान जिन पर यह आरोप है कि वह बांग्लादेशी हैं वह तीन पीढ़ियों से यहां बसे हैं, सच्चाई क्या है इसका पता करना सरकार का काम है लेकिन सरकार मोदी मॉडल है उसे लू टते पिटते मुसलमानों की चिंता नहीं है और शायद उसे भी मुसलमान विदेशी ही महसूस होते हैं, सवाल यह है कि इतनी बड़ी संख्या में अपना  देश छोड कर एक दूसरे देश से लोग हमारे देश में दाखिल होते हैं, और बी एस, एफ (बॉर्डर सुरक्षा बल) को भनक नहीं लगती, तो यह विशेष श्रेणी की  फोस रखने और उस पर करोड़ों खर्च करने की जरूरत क्या है? दूसरी बात यह है कि दंगे द्वारा मुसलमानों को तो सजा दी जा रही है बीएसएफ को कोई कुछ नहीं कह रहा? क्या उनके सिर पर डबल जिम्मेदारी नहीं है  एक ओर तो उन्हों  ने  अपनी ड्यूटी से लापरवाही बरत ते हुए लाखों लोगों को देश में प्रवेश करवा कर  देश पर भारी बोझ डाल दिया दूसरी ओर उनकी इस करतूत से देश दंगों की आग में जल रहा  है,उधर अपना  देश छोड़ने करके आने वाले लोगों पर दुख होता है जो अपना देश छोड़कर जूक दर जूक लाखों की संख्या में दूसरे देश में कर रहे  हैं, अपना घर जहां इंसान पैदा हुआ है, जहां उसका घर परिवार है, जहां की मिट्टी उसे बखूबी पहचानती है क्या उसे एकाएक छोड़ देना और अजनबी जगह पर लोगों का जूक दर जूक चले आना समझ में आने वाली बात है और अगर ऐसा हुआ भी है तो वह सब लोग शिविरों में जमा हैं, सरकार  ऐसा क्यों नहीं करती कि बांग्लादेश या वह देश जहाँ के वे मूल निवासी हैं उस  देश से बात कर उन्हें वापस  भिजवाए , बात दरअसल यह है कि दूसरे देश से इतने बड़े पैमाने पर गुप्त तरीके सेअपना   देश छोड़ कर दुसरे देश में परवेश  संभव नहीं है जो लोग इतिहास पर नज़र रखते हैं उनका कहना है कि उन्नीस सौ तीस से पहले अंग्रेजों ने पड़ी संख्या में सय्युक्त बंगाल से मजदूरों को आयात किया था क्योंकि बंगाली मजदूर बहुत जफ़ा कश, मेहनती और शरीर में मज़बूत होते  हैं, जबकि यहां के पुराने निवासी  बोडो जनजाति अत्यंत कमज़ोर , पास्ता  कद कामचोर होते हैं, इसलिए अंग्रेज बंगाली से मजदूरी कराना अधिक पसंद करते थे, अत यह सब बंगाली उसी समय से  यहाँ पर बसे हैं और अब उनकी तीसरी पीढ़ी है उन लोगों ने यहां की उबड़ खाबड़ ज़मीन  पर मेहनत करके उसे खेती  योग्य बनाया है, उनकी संख्या लगभग बोडो जनजाति के बक़दर है, इ  दंगे का मुख्य कारण बंगाली नहीं बोडो हैं, जो पहले से ही अलाहदगी पसंद है, और उनकीयही आदत  उन्हें परेशान कर ती  है जिस   का  समय समय पर हिंसा के रूप में इज़हार होता  रहता है, बोडो जनजाति की संख्या बमुश्किल तीस प्रतिशत है, यह तीस प्रतिशत आबादी बोडो लैंड अलग चाहती है, मोदी मॉडल सरकारों ने कभी भी उनसे सख्ती से निपटने की कोशिश नहीं, उल्टा वह मुसलमानों को दोषी  ठहराती  है और बोडो के सामने उसका उस का अंदाज़  सुशामदाना है यही कारण है कि तीस प्रतिशत आबादी के लिए उसने बोडो टयूटरनल परिषद (बी टी, सी) स्थापित की हुई है उसे वह  सभी अधिकार हैं जो एक राज्य को प्राप्त होते हैं, अगर यह मोदी मॉडल सरकारें यूही चरमपंथियों के सामने घुटने टेकती रही तो यह   समस्या कभी हल होने वाला नहीं है, असम में कांग्रेस का राज है और देश में सांप्रदायिक दंगे कांग्रेस पार्टी की ही देन है उसके शासनकाल में सांप्रदायिक दंगों का लम्बा  इतिहास रहा है, इस पार्टी में  या तो इच्छाशक्ति की कमी है या यह  जानबूझकर इस मामले में ला परवाह बरतती रही है, अंत क्या कारण है कि जहां कांग्रेस पार्टी को मात देकर अन्य दलों ने एक विशेष क्षेत्रीय दलों ने सरकार की स्थापना की है वहाँ या तो सांप्रदायिक दंगे बिल्कुल नहीं हुए या हुए भी तो उन पर बहुत जल्दी नियंत्रण पा लिया गया, उसमें केवल मोदी के गुजरात का  मामला अलग रहा है वर्ना  उत्तर प्रदेश में मायावती का कार्यकाल रहा हो या मुलायम सिंह का  (स्पष्ट रहे कि हम केवल मुलायम सिंह की बात कर रहे हैं अखलेश की नहीं) या बिहार में लालू का राज रहा हो या नीतीश कुमार का इन सब की सरकारों में हजार दोष रहे  हूं लेकिन उनका कार्यकाल सांप्रदायिक दंगों से लगभग मुक्त है, और अगर  कहीं कोई घटना हुई  भी तो उनकी सरकारों ने चौबीस घंटे के भीतर उस  पर काबू पा लिया  है , जबकि इन दोनों राज्यों में कांग्रेस के लंबे शासनकाल में सांप्रदायिक दंगों की लंबी तारीख रही  है, बल्कि सच पूछिए तो इस तरह के दंगों का न थमने वाला  सिलसिला ही था जिसने उन रियासतों में कांग्रेस की नय्या को ऐसा डबोया कि आज तक उसे किनारा नहीं मिला, और वह  इन राज्यों में धूल में मिल कर  रह गई, असम में जिस तरह से बराबर डेढ़ महीने से हिंसा चल रही  है और कांग्रेस पार्टी की सरकार उस पर काबू  पाने में नाकाम रही है उसने बिहार और उत्तर प्रदेश में कांग्रेस पार्टी के साशन काल की  याद ताजा कर दी है, अगर यही स्थिति रही तो जल्द ही असम में भी पार्टी का वही हाल हो कर रहेगा जो उत्तर प्रदेश और बिहार में हुआ है.