Pages

Labels

Saturday, February 16, 2013

तुष्टी करण


,  तुष्टी करण और कटरता का पोषण, यह शब्द हिंदी अखबारों के आम शब्दों का हिस्सा हैं , उनका इस्तेमाल मुसलमानों को चिढ़ाने और बहुसंख्यक वर्ग को खुश करने के लिए किया  जाता है, जहां सरकार की ओर से कोई ऐसा  मामला सामने आया  जो उनके हित में हो वहां साम्प्रदायिक राष्ट्रवादियों को वोट बैंक राज नीती दिखने लगती है, अगर यह वोट बैंक राज नीती है तो मुसलमानों के खिलाफ जहर उगल कर मुस्लिम विरोधी ताकतों को अपनी ओर आकर्षित करना भी तो  राज नीती है, कोई मुसलमानों के समर्थन में बयान देकर उन्हें अपनी ओर आकर्षित करने की कोशिश करता है तो कोई उन के विरोध में बोल कर बहुल वर्ग को अपनी ओर खीच ने  की कोशिश करता है, यह भी ध्यान देने योग्य है कि अल्पसंख्यक वर्ग का समर्थन हासिल करने की राजनीति से  अधिक आसान बहूसंखयक   वर्ग की खुशामद की राजनीति है,  विशेष  तॊर पर भारत में कि यहां अल्पसंख्यकों में सबसे बड़ी कम्युनीटी  अल्पसंख्यक मुसलमान हैं, जो बमुश्किल पंद्रह प्रतिशत से अधिक नहीं, वह पंद्रह प्रतिशत भी ऐसा वर्ग जो बमुश्किल सभी तीस पैंतीस फीसद वोट  करता है, वैसे भी मुसलमानों के संबंध में केवल बयान देने पर सरकार बस करती है, पिछले दिनों देश के प्रधानमंत्री ने एक बयान दाग दिया कि देश के सनसाधनों पर मुसलमानों का पहला हक है, इस बयान से मुसलमानों को क्या मिल गया? सिवाय इसके कि संपर्दायक  राष्ट्रवादियों के पेट में मरोड़ हो गया और उन्हें  वोटबैंक की  राज नीती और तुष्टी करण की राजनीति नज़र आने लगी, वैसे यह तुष्टी करण किस बला का नाम है उसे केवल भाजपा वाले  ही बेहतर समझते हैं, अगर बहुसंख्यक वर्ग की भलाई का कोई काम सरका र्करे तो वह तो देश भागती  का काम है, और अगर अल्पसंख्यकों में  विशेष तोर पर  मुसलमानों के हित का कोई काम करने की  केवल घोषणा हो जाए  तो वह तुष्टी करण है, अजीब डबल पैमाने है उन लोगो के , मूल बात यह है कि यह अभी भी एक हजार साल पुराने काल में जी रहे हैं, उनका मानना ​​है यह देश तो मूल हिंदुओं का है, रही बात मुसलमानों की वह तो बस यूँ ही हैं, इसलिए उन्हें वही काम देश हित में लगता है जो मुसलमानों के लिए न हो और ऐसा लगता है कि इस ख्याल में  केवल जनता ही शामिल नहीं, शायद सरकारों का भी यही मानना ​​है, इसलिए वह भी मुसलमानों के लिए अधिकतम बस घोषणा करती है, उस पर अमल नहीं करती, प्रधानमंत्री जी के  इस बयान को लीजिए उन्होंने कहा कि भारत पर मुसलमानों का पहला हक है, अब इसमें काम करने के लिए था ही क्या? सिवाए  इसके कि उन्होंने विरोधियों को एक हथियार थमा दीया था, इसके अलावा मुसलमानों के लिए सरकार कुछ और तरह के फैसले भी  करती है लेकिन बहुत सोच समझ कर, वह कैसे आइए वह भी हम बताते हैं, आपको याद होगा कि जब केंद्र में वाजपेयी की सरकार थी तो कांग्रेस पार्टी को देश में मुसलमानों की दुर्दशा का ग़म सताने लगा था और उसने मुसलमानों के लिए नौकरियों में आरक्षण की न केवल मांग की थी बल्कि अपने चुनावी घोषणापत्र में उन्हें आरक्षण देने का वादा किया था लेकिन जैसा कि हमने कहा कि हमारी सरकार के वह वादे जो मुसलमानों के लिए हों , वह केवल वादे हैं उन पर अमल की जरूरत नहीं है, इसलिए जब मुसलमानों ने आने वाले चुनाव में जो सोनिया जी के नेतृत्व में लड़ा गया था कांग्रेस पार्टी को थोक में वोट देकर उसकी सरकार बनवादी तो उसने अपने पांच साल के शासन में मुसलमानों को आरक्षण नहीं दिया, हां उनके लिए एक घोषणा और कर डाला, वे घोषणा थी  सच्चर समिति के  गठन की , जिसे यह पता लगाना था कि मुसलमान आवश्यक पिछड़ेपन तक पहुच गया कि नहीं, आखिर कार  समिति ने रिपोर्ट दी और बताया कि यह कोम  मज़लत के गहरे गड्डे  में पड़ी हुई है, खैर कोई बात नहीं, सरकार को अब तो मुसलमानों के लिए कुछ करना ही था, हमारा मतलब है कि हस्बे परंपरा उसे मुसलमानों के लिए एक घोषणा करना था, इसलिए उसने फिर एक घोषणा कर दी और वह थी  रंगनाथ मिश्रा आयोग का गठन की घोषणा जिसे यह रिपोर्ट तैयार करनी थी कि मुसलमानों को कितना आरक्षण दिया जाए और कैसे दिया जाए, अभी रिपोर्ट  तकमील को नहीं  नहीं पाहूची थी कि वही हो गया जो होना था, यानी सरकार का  समय पूरा हो गया, और अपनी पांच वर्षीय अवधि में मुसलमानों के लिए कई काम किए, मेरा  मतलब है कई घोषणा किए और विरोधियों द्वारा तुष्टी करण के   ताने स्वयं सहे और मुसलमानों को सहने पर मजबूर किया, और खुद पांच साल तक सत्ता की कुर्सी का मज़ा लेती रही, अब आप कहेंगे कि सरकार की यह  घोषणा  मुसलमानों को आरक्षण देने के लिए ही तो थी , तो साहब इस भ्रम में न रहिए है, क्योंकि उसके फेसले  बड़े सोचे समझे होते हैं  घोषणा केवल  घोषणा के लिए होती  हैं घोषणा अमल के लिए  नहीं होती ,  पिछले पांच साल का  शासन तो बीता ही था दूसरा दौर भी गुजर गया, लेकिन मुसलमानों को कुछ नहीं मिला, इस शासनकाल में भी ऐसा नहीं है कि सरका ने मुसलमानों के लिए कुछ नहीं किया, यानी कोई घोषणा नहीं की, अभी 2012 में जब उत्तर प्रदेश में चुनाव का समय आया तो कांग्रेस की केंद्र सरकार ने मुसलमानों के लिए वही किया, मेरी मुराद  है कि घोषणा की, घोषणा आरक्षण की , यह बड़ी समझदारी के साथ किया गया था, इस तरह से कि कहीं भगवान न करे  इस घोषणा को पूरा करना ही पड़े  तो मुसलमानों को कुछ मिल  सके, इसलिए प्रथम तो उसने यह किया कि उसकी मात्रा चार प्रतिशत निर्धारित की यानी ऊँट के मुँह में जीरा , और जीरा भी  एक ऊँट के मुँह में नहीं छह ऊँटों के मुंह में, मतलब यह कि इसमें पांच और अल्पसंख्यक जोड़ें वह भी ऐसे ऐसे  जिनकी दर साक्षरता सौ की सौ प्रतिशत है, इसमें शामिल किये गए जीनी,बोद्ध , सिख,और  पारसी वगेरह , वह तो खैर से सरकार ने ड्राफटिंग ऐसी कराई थी कि जल्द ही कोर्ट ने इस पर प्रतिबंध लगा दिया,  वरना तो उसने तुष्टी करण का एक आरोप मुसलमानों के सिर थपवाने का काम ओर  कर दिया  था, और मिलना तो मुसलमानों को कोछ था ही नहीं, हां वह  अल्पसंख्यक ज़रूर कुछ फायदा उठा लेते  जिनके बच्चे सौ प्रतिशत शिक्षित  हैं, उनको और कुछ नौकरियों के अवसर जरूर हाथ आ जाते, और मुसलमान हाथ मिलते रह जाते और फिरका परस्तों  द्वारा मुंह भुराई का आरोप सहने पर मजबूर होते