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Wednesday, March 25, 2015

महेंदर पाल आर्य

दूसरों के कन्धों पर बैठ  कर खुद को बड़ा दिखाने वालों की कमी नहीं है ऐसे ही  साहब हैं महेंदर पाल आर्य ,वह बताते हैं की जनाब किसी मस्जिद में इमामत करते थे ,बेचारे ग़रीब इमाम की औक़ात भी क्या  होती  जिसका  बस  घरवाली पर नहीं चलता वह इमाम पर गुस्सा उतार लेता है ,इन गरीबों को खाना भी अलगअलग  घरों से  मिलता है वह भी मिला मिला, न मिला ,महेंद्र  ने सोचा  क्यों न कारोबार बदला जाए ,तो जनाब महेन्द्रपाल आर्य होगये ,खुद   ही बताते है की पहले उनका नाम महबूब अली था ,चलो पहुंची वहीँ पे ख़ाक जहाँ का खमीर था ,बेहतर हुआ कि जनाब ने जल्द ही  मस्जिद  छोड़ दी वरना जैसी अक़्ल रखते थे न  जाने कितनो का इमान खराब करते ,वह जो कक्षा १ मे बच्चों को पढ़ाया जाता है न, क, से कबूतर ,जब बच्चा अगली कक्षाओं  में जाता है तो उससे उम्मीद  की जाती है कि  वह इस बात को खुद समझ जाये कि  ,क ,से कबूतर का क्या मतलब है और वह यह ज़िद न करने लगजाये कि, क ,से कबूतर ही होता है क से क़लम या क्लास या कुछ और नहीं बन सकता ,बस यही हाल  है जनाब का ,कहते है कि अल्लाह ने कहा  है कि , छ दिनों में उसने सृष्टि को रचा है तो यह बताओ कि सूरज नहीं  था तो दिन का   पता  कैसे चला ,अरे वाह पंडित जी ज्ञानी हो तो ऐसा हो,अरे मेरे भोले पंडित अल्लाह ताला काल और आकाश से परे है उसे इंसानी दिनों से क्या सरोकार ? यहां तुम्हारे जैसे भोले मानव को यह समझाया गया है कि उसने सृष्टि को छ पिरयड में बनाया है जब कि  वह चाहता तो एक शब्द कुन से सृष्टि को बना सकता था ,पंडित जी तुम्हारी यही अदाएं तो यह सोचने पर मजबूर करती है कि कैसे कहदूं तुम मोलवी थे तुम ने अल्लाह को अर्श पर बिठा कर यह प्रश्न दाग दिया कि  अल्लाह बड़ा  है या अर्श ,अरे महाशय  कहा न कि  वह काल  व् आकाश से परे है उसे बैठने उठने से कोई सरोकार नहीं है,उठना बैठना ,सोना जागना यह सब इंसानी सिफ़ात  हैं ईश्वर तो इन सब से परे  है,  

Sunday, March 22, 2015

महेंद्र पाल आर्य .......,,,,,.... हंसी आती है हजरत ए इनसान पर

महेंद्र पाल आर्य .......,,,,,....
 हंसी आती है हजरत ए  इनसान  पर 
यूं ट्यूब पर एक वीडयो देखा इस में महेन्दर जी एक किताब का विमोचन कर रहे हैं ,वह कह रहे हैं की उन्हों ने यह किकाब उन के ताल्लुक़ से मेरी किताब के जवाब में है ,मैं ने उन की यह किताब नहीं देखी ,लेकिन उनके भाषण में जो बेतुकी बातें उन के द्वारा कही गई है ,उन्हें सुन कर फिर मुझे वही बात याद आगई जो मैं ने उन पर टिप्पणी कर ते होए कहा था की वह दर्जा दो के बच्चे जैसी बातें करते हैं ,आप भी उनकी बातें सुनये  और उनके दिमाग पर अपना सर धुन ये ,,,,,यह साहब पवित्र क़ुरआन की एक आयत का अर्थ जो इनका अपना घड़ा हुआ है  यों  करते हैं कि ,,,और फिर अल्लाह अर्श पर बैठ  गया ,फिर प्रशन  खड़ा करते हैं ,उनका प्रशन  है कि  ,अल्लाह बड़ा है या अर्श ?फिर कहते हैं कि ,अर्श बड़ा है तो तुम अल्लाहु अकबर अर्थात अल्लाह सब से बड़ा है क्यों कहते हो ?और अगर अल्लाह बड़ा हे तो वह छोटे अर्श पर कैसे आगया ,उनके इस प्र्शन  पर मुझे एक गंवार कहावत याद आरही है ,आप ने भी सुना होगा कि ,अक़्ल बड़ी या भेंस ,बस ऐसा ही इस दर्जो दो के बचे का भी यह प्र्शन है ,उसने अपने भाषण में एक प्र्शन और किया है ,वह क़ुरान की एक आयत पढता है जिम में अल्लाह कहता है की कि हमने सृष्टि को छः दिन में बनाया ,उस पर इन महाशय का प्रशन है कि दिन की पहचान सूर्य से होती है तो यह बताओ कि  सूर्य अगर पहले बनाया तो उसे रखा कहाँ और अगर सूर्य बाद में बनाया तो दिन की पहचान कैसे की ,वाह क्या बात है साहब पंडित ,मुझे फिर एक गंवार चुटकला याद आरहा है वह यह कि गाँव का एक लड़का शहर से ग्रेजुऎशन कर के अपने गावँ पहुंचा तो गॉँव मै उसकी पढाई के चरचे थे एक गाँवदी को सूजी कि क्यों न उसकी परीक्षा ली जाए ,तो वह उसके पास पहुंचा और ज़मीन पर आड़ी टेढ़ी लकीर बना कर कहने लगा कि बताओ यह क्या है ,अब बेचारे ग्रेजएट साहब खामोश हो रहे और कहने लगे कि चाचा आप ही बतादें कि यह क्या  है  ,गाँवदी बोला के बनते ग्रेजुएेट हो और इतनी सी बात का भी नहीं पता कि यह बैल का मूत  है ,,,,अब इस से ज़्यादा इस गरीब पंडित पर फिर कभी लिखूंगा


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हक़ प्रकाश बजवाब सत्‍यार्थ प्रकाश amazon shop

  • आर्यसमाज के संस्थापक स्वामी दयानंद सरस्वती की पुस्तक सत्यार्थ प्रकाश के चौदहवें अध्याय का अनुक्रमिक तथा प्रत्यापक उत्तर(सन 1900 ई.). लेखक: मौलाना सनाउल्लाह अमृतसरी 


मुकददस रसूल बजवाब रंगीला रसूल . amazon shop लेखक: मौलाना सनाउल्लाह अमृतसरी
  • '''रंगीला रसूल''' १९२० के दशक में प्रकाशित पुस्तक के उत्तर में मौलाना सना उल्लाह अमृतसरी ने तभी उर्दू में ''मुक़ददस रसूल बजवाब रंगीला रसूल'' लिखी जो मौलाना के रोचक उत्‍तर देने के अंदाज़ एवं आर्य समाज पर विशेष अनुभव के कारण भी बेहद मक़बूल रही ये  2011 ई. से हिंदी में भी उपलब्‍ध है। लेखक १९४८ में अपनी मृत्यु तक '' हक़ प्रकाश बजवाब सत्यार्थ प्रकाश''  की तरह इस पुस्तक के उत्तर का इंतज़ार करता रहा था ।
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